Tuesday, March 10, 2015

आज फिर वो बात याद आ गई .....


आज फिर वो बात याद आ गई .....

आज फिर एक घटना एसी घट गई फिर वो  बात याद आ गई
अभी तो निकले थे घर से अभी ये काली रात सामने आ गई

बेपरवाह बचपन मैं उठा करते थे जो कदम सच्चाई के साथ
आज लापरबाह जबानी में खोई सच्चाई फिर सामने आ गई

टूटते तो तारे भी हैं हजारों असमान से हजारों ख्बाहिसों के साथ
फिर तू क्यूँ  टूटता है  चंद सपनों के साथ वो बात याद आ गई

सुनहरी कल्पनायों की झाड़ियों में फसा क्यूँ  गैरों के साथ
फिर भी नहीं मिटाता बंदिशें अपनों के साथ वो बात याद आ गई

आज भी यूँ ही भटकता है बिना कोई मंजिल के साथ
फिर तू क्यूँ नहीं समझता अपने मन की बात वो बात याद आ गई

चला है सबके जीवन से दुःख मिटाने अपने भरोसे के साथ
फिर क्यूँ  होता है दुखी अपने जीवन के साथ वो बात याद आ गई

 उम्मीद लगाया बैठा है कर जाऊ कुछ तो आज
फिर क्यूँ सोचता है कल की बात वो बात याद आ गई....



कुछ पंक्तियाँ "श्री अरविन्द्र केजरीवाल जी"को समर्पित।।।
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कल मनमोहन आज मोदी और कल ना जाने कौन महामहीम होगा 
हाँ यही सत्य है और इनका ना कोई उपचार होगा 

कल की बात भुला कर नए पहलुओ पर विचार होगा 
हाँ क्यों नहीं भाई आखिर रंक भी तो कभी राजा होगा। 

बहुत से मुद्दों के निवारण का भी प्रस्ताव होगा 
हाँ मगर ये प्रस्ताव, प्रस्तावना तक ही सीमित होगा। 

हर एक नागरिक भले ही मतदान का हक़दार होगा 
पर सायद वो दो पहर की रोटी का मोहताज होगा। 

बेशक मंगल और चाँद सब एक होगा 
पर क्या हमारी पृथ्वी का यही हाल होगा। 

कभी बिजली होगी तो कभी पानी होगा 
एक -एक कर सब इनका शिकार होगा।

                                                                                                                                 …   पल्लव सोनी