Sunday, April 8, 2012

आज फिर वो बात याद आ गई .....


आज फिर वो बात याद आ गई .....

आज फिर एक घटना एसी घट गई फिर वो  बात याद आ गई
अभी तो निकले थे घर से अभी ये काली रात सामने आ गई
बेपरवाह बचपन मैं उठा करते थे जो कदम सच्चाई के साथ
आज लापरबाह जबानी में खोई सच्चाई फिर सामने आ गई
टूटते तो तारे भी हैं हजारों असमान से हजारों ख्बाहिसों के साथ
फिर तू क्यूँ  टूटता है  चंद सपनों के साथ वो बात याद आ गई
सुनहरी कल्पनायों की झाड़ियों में फसा क्यूँ  गैरों के साथ
फिर भी नहीं मिटाता बंदिशें अपनों के साथ वो बात याद आ गई
आज भी यूँ ही भटकता है बिना कोई मंजिल के साथ
फिर तू क्यूँ नहीं समझता अपने मन की बात वो बात याद आ गई
चला है सबके जीवन से दुःख मिटाने अपने भरोसे के साथ
फिर क्यूँ  होता है दुखी अपने जीवन के साथ वो बात याद आ गई
 उम्मीद लगाया बैठा है कर जाऊ कुछ तो आज
फिर क्यूँ सोचता है कल की बात वो बात याद आ गई