कुछ मीठी कुछ खट्टी कुछ बेस्वाद होती है
नाजाने हर रिश्ते में क्यूँ ये तकरार होती हैं
क्यूँ भूल जाता है इन्सान ,इंसानियत की जो बहार
होती है
निभाता जिन्दगी भर जिसे,सायद बही हैबानियत होती है
बनाता यादों की कतार, कर्कस्ता जिनमे सुमार होती है
पर ना भुला पाता जब मीठी सी तकरार होती है
उम्मीद के दिये को जलाने की चाहत तो तुझमे होती है
पर जब ना मिल पाती समय की बाती तो बेस्वाद जिन्दगी होती है
ना जानना चाहता बजूद को अपने जब जग से तेरी पहचान होती है
तो अब क्यूँ भटकता इस संसार में जब मौत ही तेरी जान होती है
उम्र के गुजरते इस सफ़र से ना कोई बेईमानी होती है
गुजर जाता है सफ़र फिर ना कोई परेशानी होती है