बदलते मौसम की तरह बदलते हैं वो
कभी बनाते हैं दूरी तो कभी दूर रहकर भी पास आ जाते हैं वो
जाने क्या मानते हैं हमें जो सौ बार इन्कार कर एक बार इज़हार कर जाते हैं वो
इसे हम समझें उनकी नादानी या जन कर यूँ हमारा मजाक बना जाते है वो
हम नहीं मानते बुरा सोच कर हमेशा नादानी कर जाते हैं वो
कभी बनाते हैं दूरी तो कभी दूर रहकर भी पास आ जाते हैं वो
जाने क्या मानते हैं हमें जो सौ बार इन्कार कर एक बार इज़हार कर जाते हैं वो
इसे हम समझें उनकी नादानी या जन कर यूँ हमारा मजाक बना जाते है वो
हम नहीं मानते बुरा सोच कर हमेशा नादानी कर जाते हैं वो
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